अंधेरे का खंजर: एक पहाड़ी गांव की खौफनाक दास्तां
पहाड़ों की गोद में बसा हुआ था लखवारा गांव. घने जंगलों से घिरा, जहां सूरज की किरणें भी छनकर आती थीं. इस गांव के बारे में लोग कम ही बात करते थे, क्योंकि अंधेरे की आहट यहां हमेशा सुनी जाती थी
एक दिन, शहर से पढ़कर लौटा अभिषेक, इस गांव का रहने वाला था. कई सालों बाद घर वापसी पर, गांव में एक खौफनाक सन्नाटा छाया हुआ था. हर घर बंद, हर चेहरे पर दहशत. अजीब सी खामोशी जो हवा में ही नहीं, बल्कि लोगों के दिलों में भी घिर चुकी थी.
दादी से पूछने पर, अभिषेक को पता चला कि गांव पर एक भयानक अभिशाप पड़ा है. पूर्णिमा की रात, अंधेरे से एक खंजर निकलता है, जो गांव के एक-एक व्यक्ति को निगलता जाता है. कोई बच नहीं पाता.
अभिषेक, इस अंधविश्वास को नहीं मानता था. लेकिन उस रात, जब पूर्णिमा का चांद खून की तरह लाल होकर निकला, तो उसकी रूह कांप गई. एक कर्णभेदक चीख हवा में फटी और अंधेरे से एक काला साया उभरा. हाथ में हवा में ही घुलता हुआ खंजर, जिसका एक सिरा धधकता हुआ लाल था.
गांव के लोग घरों में छिप गए, लेकिन खंजर हर दरवाजा तोड़कर अंदर घुस जाता था. अभिषेक भागता हुआ श्मशान घाटी तक पहुंचा. वहां एक पुराना मंदिर था, जिसे गांव वाले भूतिया मानते थे.
अचानक, उसे मंदिर के गर्भगृह में एक धुंधली आकृति दिखाई दी. डरते हुए उसने पूछा, "क्या बचा सकता है इस गांव को?"
आकृति ने धीमे से कहा, "अभिशाप तोड़ने के लिए, तुम्हें खंजर के असली रूप को देखना होगा, जो अंधेरे में छिपा है."
अभिषेक ने आंखें बंद लीं और अपने भीतर की शक्ति को जगाया. जब उसने आंखें खोलीं तो अंधेरा हवा में नहीं था, बल्कि एक विशालकाय दानव के अंदर था. दानव का हाथ ही खंजर का असली रूप था.
अभिषेक ने दानव को चुनौती दी और भयंकर युद्ध हुआ. आखिर में, अभिषेक ने दानव को मंदिर के पवित्र अग्नि में धकेल दिया. दानव तड़पकर चीखा और धुंआ बनकर हवा में घुल गया.
खंजर का रूप खत्म होते ही, गांव पर छाया अंधकार हट गया. लोग अपने घरों से बाहर निकले, चेहरे पर खुशी और अभिषेक के लिए आभार.
अंधेरे के खंजर से लखवारा बच गया था, लेकिन ये खौफनाक दास्तां अब भी गांव की रातों में सुनाई देती है, एक चेतावनी की तरह, कि अंधविश्वास भले ही सच न हो, लेकिन उससे भी ज्यादा खतरनाक है सच्चाई न देख पाने का अंधकार.